हिमालय वैदिक परंपरा का आधार लेकर कार्य कर रहे हैं; चेलुसैन पौड़ी गढ़वाल के सुनील दत्त कोठारी!

चैलूसैण

उत्तराखंड की संस्कृति का परिचयात्म कार्य कर रहे हैं, पौड़ी गढ़वाल के ब्लॉक द्वारीखाल चेलुसैन के सुनील दत्त कोठारी, उनकी यात्रा वर्ष 2016 से लगातार उत्तराखंड की ग्रामीण पृष्ठभूमि में रहकर भौगोलिक परिस्थिति का सामना करते हुए आजीविका के लिए कार्यशील है।


वर्तमान में आपने स्थानीय वनस्पतियों का गहन शोध किया वंश परंपरागत वैद्य विद्या को लेकर स्थानीय जड़ी बूटियों को पहचान देकर हर्बल टी (चाय) के द्वारा रोग उपचार का कार्य करते हैं, जिनमें मुख्यता बिच्छू बूटी (नेटल) यानी कंडाली मे आयुर्वेदिक 88 प्रकार की जड़ी बूटियों को मिश्रण कर उत्तम किशन की चाय तैयार की साथ ही साथ अन्य 48 किस्म की आयुर्वेदिक चाय की उत्पत्ति स्रोत भी रहे हैं, जिनमें अकलवीर (मूलन), चिड़ पत्तियां (पाइन नीडल टी) की चाय भी काफी सराहनीय है, कोठारी बताते हैं कि सिर्फ पत्तियां नहीं होती हैं, बल्कि इनके निर्माण की प्रक्रिया तीन रूप से की जाती है सर्वप्रथम सुखाने की विधि, पत्तियों की उपचार विधि एवं मिश्रण करने की विधियां भी शामिल होती हैं। वर्तमान में आप स्थानीय जड़ी बूटियां एवं पौधों की जड़ एवं तने के द्वारा गले की माला बनाकर रोग उपचार का भी कार्य करते हैं।


इस कार्य के शोध का आधार आपके पूर्वजों की हस्तलिखित पांडुलिपि से लेकर कई परंपरागत वैद्य लोगों के पास रहकर समझा ज्ञान एवं विधियां तथा आधुनिक प्रमाणित करके स्थानीय आजीविका मिशन के साथ लोगों को प्रशिक्षण एवं उत्पादन के द्वारा आजीविका सहयोग भी दे रहे हैं।


कोठारी बताते हैं कि इन जड़ी बूटियों का आधार स्थानीय लोगों के तथ्यात्मक विवरण एवं जंगली जानवरों की स्वयं उपचार प्रणाली पर आधारित होती है। इस शोध कार्य में आपका ही दिनों तक जंगलों में तितलियों का क्रिया कलाप का गहन अध्ययन एवं अवलोकन किस प्रकार वह अन्य पौधों पर बैठती हैं, उन पौधों की गुणवत्ता एवं प्रकृति का गहन शोध करके पौधों का चुनाव करते हैं; तथा उत्पादन का निर्माण करते हैं, जो की वास्तव में जटिल प्रक्रिया होती है, परंतु आप इस कार्य में विशेषज्ञ हो चुके हैं।
आयुर्वेद रोग उपचार व ज्योतिष की बात करें तो दोनों आपस में पूरक होते हैं, इसी संदर्भ को ध्यान में रखकर आप भविष्य का आकलन केरल प्रश्नचूड़ामणि के द्वार भविष्य में होने वाली परिवर्तन को भी आप अपनी विधि के द्वारा लोगों के प्रश्न एवं शंका का निवारण करते हैं।


इन दोनों विधाओं की द्वारा कोठारी को उत्तराखंड के भूमि पर प्रसिद्धि ही नहीं अपितु अनोखा स्थान दिया, व्हाट ग्रेटेस्ट रिकार्ड बुक 2022 में भी आपके नाम व कार्यों का प्रारुप को मानता दी, स्थानीय ग्रामीण पृष्ठभूमि के स्थानीय लोगों को अपनी व्यवस्था प्रशिक्षण दिया, आपकी यात्रा यही पर समावेशित नहीं होती, आपने ऋषिकेश की भूमि पर भी विदेशी पर्यटकों को अपनी संस्कृति को प्रस्तुत कर के विश्व पटल पर अनोखी छवि बना देती है। आपने गुरु पदत्त मंत्र पर साधना की द्वारा भारतीय हीलिंग मेडिटेशन (ध्यान) पर आधुनिक प्रस्तुतीकरण किया है जिसके पाठ्यक्रम के द्वारा निर्मित वे प्रारुप में ढाला गया है, जो प्राय 6 घंटे से 21 घंटे तक चलाए जाते हैं, आप योगा एलियंस अमरीका के द्वारा सर्टिफाइटिड रजिस्टर्ड योगा टीचर के रूप में भी कार्यशील है।


शहरों की परिवेश में प्रारंभिक जीवन वह भारतीय कंपनी में 28 साल देने के बाद, वर्ष 2016 में गढ़वाल में वापसी की, चेलुसैन, जोशीमठ एवं ऋषिकेश में अधिकतर समय गुजारते हैं, तथा निष्ठा भाव से हिमालय की परंपरा वह स्थानीय लोगों की आजीविका में सुधार के लिए प्रशिक्षण, उत्पादन एवं बाजारी करण की मुहिम से जुड़कर उत्तराखंड को वैदिक परंपरा को सक्षम मनाने का अटूट अविरल प्रयास कर रहे हैं। कोठारी बताते हैं कि, पितृ पूर्वजों परमात्मा के सहयोग से ही मनुष्य कार्य कर पाता है, और कई लोग उत्तराखंड को विभिन्न सिवाय दे रहे हैं, सेना, हॉस्पिटैलिटी तथा अन्य बौद्धिक पदों पर बैठे हैं, इसी संधर्व में कोठारी अपनी लिए कार्य स्वयं सुनकर विश्वस्त पर प्रस्तुत कर सबसे समय समय पर लोहा मनवाते रहे हैं।


कोठारी आगे बताते हैं समय पर उचित आर्थिक रुप से धन होने के कारण लोगों के दया भाव में रहकर व मांगकर तथा कई बार भूखे पेट रहकर इस प्रकार की कला को विकसित एवं समाज को देने के लिए क्रियाशील रहे हैं।


हम सभी उत्तराखंड वासियों को जानना चाहिए सांस्कृतिक पहचान को किसी न किसी प्रारुप में ढलकर भविष्य के निर्माण में से योगदान ही उत्तराखंडी व्यक्ति का कार्य होना चाहिए, तभी हमारा राज्य सुखद एवं सक्षम व परंपरागत ज्ञान को बचा पाएगा।, चुपचाप बैठ कर, चिंतन व मनन ही काफी नहीं है, आधुनिक रुपांतरण, प्रस्तुतीकरण क्षमता का प्रारुप में समावेशित करके मानवता की सच्ची मिसाल होती है।


स्थानीय इकाई के लिए प्रारुप बनाना वह सुझआत्मक मार्गदर्शन के द्वारा हम सभी को कोठारी के कार्य का आधुनिक रुपांतरण ही काफी नहीं, अभी भी भविष्य के गर्भ में अनेक विधाएं है जिनको विश्व पटल पर रखना अनिवार्य होगा यह ही सच्ची उत्तराखंडी व्यक्तियों की पहचान होगी।