संस्कृति, साहित्य की मुहिम के लिए प्रवासी पहुँच रहे है गाँव

रिखणीखाल

अब सिर्फ गर्मियाँ बिताने नहीं लौट रहे उत्तराखंडी, बल्कि ग्रामीण अंचलों में चल रहे संस्कृति, साहित्य के लिए मुहिम के लिए जा रहे हैं, लेकिन उनको निम्न परेशानियों से जूझने के लिए कई बार सोचना पड़ रहा है।

वे कारण इस प्रकार हैं:-

चारधाम यात्रा में एक बड़ा हिस्सा बसों का अधिग्रहण किया हुआ है जिससे पर्वतीय इलाकों में यातायात व्यवस्था चरमराई हुई है,तथा बुरी तरह प्रभावित हुई है।आने जाने के लिए प्राइवेट टैक्सी ऊंचे व औने पौने दामों पर बुकिंग हो रही है।जो कि सभी के लिए सम्भव नहीं है।ये खास कर रिखणीखाल में देखा जा रहा है।इलाके में शाम ढलते ही खूंखार बाघ, गुलदार के आतंक का खतरा लगातार बना हुआ है,यह भी आप भलीभाँति जानते हैं। जान जोखिम में डाल कर जाना है।

अन्य कारणों में पेयजल संकट का भी है,रिखणीखाल के कई गांवों में लोग पानी के बिना तरस रहे हैं। सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट जल जीवन मिशन अभियान भी हिचकोले खा रहा है,गांवों में नल तो हैं लेकिन उनमें जल नहीं है।जैसे ढाबखाल, मंजूली दोनों सिनाला, उनेरी, नयैडी, पलीगाव, अनदरसौ, घेडी, बराई धूरा, द्वारी, कंडिया आदि।ये योजना केवल सरकार को अपनी उपलब्धि गिनाने के लिए मात्र है तथा एक व्यवसाय बन गया है।सडकों की हालत से भी अनभिज्ञ नहीं है। हिचकोले खाकर या उल्टी करके पेटदर्द हो जाता है।सड़क पर गहरे गहरे गढ्ढे हैं जो एप्प में डालने से भी मरम्मत नहीं हो पा रहे हैं।

आजकल धूल भरी ऑधी में पेड़ गिरने का भी भय है।वो भी जान के लिए खतरा है।पहाड़ी अंचलों में संचार नेटवर्किंग की भी भी जटिल समस्या है,जिससे देश प्रदेश से सम्पर्क कट जाता है।मोबाइल को किसी पेड़ पर या घर के किसी खम्बे पर टांगना पडता है।गांवों में जगह जगह पर शराब के ठेकों व उप ठेकों की कमी नहीं है जिससे कि शान्तिप्रिय लोगों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती है।इससे भी गांव का माहौल खराब हो जाता है।और खाद्य सामाग्री मिले न मिले लेकिन शराब जरूर मिल जाती है।शराब से दूर रहने वाले भी पीने को मजबूर हो जाते हैं।

गांवों में बैकिंग सेवायें नगण्य हैं जो कि अब आवश्यक सेवाओं में शुमार हो गया है।दिल्ली व अन्य प्रदेशों से आने जाने वालों के लिए कोटद्वार से पर्याप्त रेल सेवायें नहीं है,जो है उनकी समय सारणी मेल नहीं खाती। जिससे अपने गांव आने के लिए कदम पीछे खींचने पडते हैं। गांव में घरेलू सामान खरीदने के लिए मनमर्जी के दाम चुकाने पडते हैं चाहे यातायात आदि ही क्यों न हो।

अगर उत्तराखंड सरकार इन विन्दुओ पर ध्यान दे या सुधारीकरण करे तो हर कोई नौकरी पेशा वाला गर्मियों में अपने गाँव अवश्य आयेगा तथा गांव में चहल-पहल व रौनक होगी।लेकिन सरकार की अनदेखी व उदासीन रवैये से व कुव्यवस्था से लोग विचार बदल देते हैं। ये बातें अजमायी हुई हैं। गहन विचार विमर्श की आवश्यकता है।

आजकल के दिनों में रिखणीखाल क्षेत्र में रौनक ही रौनक है।रिखणीखाल में कयी जगह मंदिरों में भाग वत कथायें, मंदिरों की स्थापना,मरम्मत, पूजा पाठ, शादी-ब्याह, जागर, आदि कार्यक्रम चल रहे हैं। ग्राम रजबौ मल्ला में ढौटियाल महादेव मंदिर का स्थापना,पूजा पाठ का तीन दिन का कार्यक्रम है।जिसमें चार दिन से बाहर मंदिर के अहाते में लगातार तीनों समय लंगर चल रहा है।गाँव में 500 के करीब लोग पहुंचे है।इसी प्रकार ग्राम जेठोगाव में भी मंदिर में चार दिन का पूजा-पाठ का कार्यक्रम है।ग्राम कंडिया में भी इसी प्रकार लोग जुटे हैं वहाँ भी मंदिर सम्बन्धित मांगलिक पूजा-पाठ है।

रिखणीखाल क्षेत्र में स्थानीय मेलों ( कौथिक) का भी अलग ही महत्व व पहचान है।वे भी इसी मई माह में सम्पन्न होते हैं। इसी इलाके का प्रसिद्ध फल काफल, हिसोला आदि भी आजकल ही पकते हैं, इसका स्वाद भी चखा जा सकता है।स्कूली बच्चों की छुट्टियाँ भी इन्हीं दिनों पडती हैं वे भी अपना गाँव देखना पसन्द करते हैं कि उनके पूर्वज कहाँ व कैसे जीवन काटते थे। उनके लिए भी एक अलग ही अनुभव है।

अब ऐसे में सरकार उपरोक्त समस्याओ पर ध्यान दे तो कौन अपने घर नहीं आना चाहेगा।सरकार ने संकल्प लिया है कि 2025 तक इंतजार करे,हम नम्बर वन राज्य बनाना चाहते हैं।

रिपोर्ट संकलन- प्रभु पाल सिंह रावत, ग्राम नावेतल्ली रिखणीखाल।