कार्यकर्ताओं के रोष के बाद, क्या हो पाएगी कांग्रेस की नया पार |

विशेष रिपोर्ट

पौड़ी

उत्तराखंड के सामान्य निर्वाचन शुरू हो चुके हैं और सभी दलों और निर्दलियों ने जीत के लिए पूरा जोर लगा दिया है | जहाँ एक और बीजेपी और कांग्रेस अपने समर्थकों के बल पर जीत का दावा कर रहे हैं | वहीँ दोनों दलों के कार्यकर्ताओं की नाराज कुछ भी गुल खिला सकती है और जीत का दावा करने वालों को मुहं की न खानी पड़े |

पौड़ी गढ़वाल की 6 विधान सभाओं में नाराज चल रहे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की यदि बात की जाय तो उनके द्वारा सभी विधान सभाओं में काफी नाराजकी जाहिर की थी और रोष व्यक्त करते हुए सामूहिक रूप से त्याग पत्र तक दे दिए गए | जिसे लेकर पार्टी द्वारा कार्यकर्ताओं को मनाने का दौर चलता रहा | कुछ को तो पार्टी ने प्रदेश में बड़े पद देकर उन्हें और उनके कार्यकर्ताओं को शांत किया और पार्टी की एकजुटता बनाए रखने का सन्देश तक दिया |

वहीँ अभी भी कई कई नेता और उनके कार्यकर्ता नाराज चल रहे हैं और शांत बैठकर वेट एंड वाच की स्थिति बनाए हुए हैं, जबकि कई कांग्रेसी नेता अन्य पार्टियों के संपर्क में बने हुए हैं | जिस कारण कांग्रेस भले ही बाहर से मजबूत दिखाई दे रही हो लेकिन अंदर ही अंदर खोखली होती जा रही है |

यदि बात करें तो कोटद्वार और श्रीनगर विधान सभा ही ऐंसे हैं जहाँ नाराजगी नहीं है, क्योंकि श्रीनगर से पार्टी के मुखिया गणेश गोदियाल और कोटद्वार से सुरेन्द्र सिंह नेगी का पहले से ही चुनाव लड़ना तय था | जिस कारण सभी कार्यकर्ता लगातार घर घर जाकर अपना प्रचार प्रसार कर रहे थे |

अब यदि सीधे तोर पर कहें तो कोटद्वार ही ऐंसी सीटें है जहाँ कांग्रेस के जीतने के परवल आसार नजर आ रहे हैं | वहां धीरेन्द्र प्रताप के निर्दलीय लड़ने के कारण सीधे तौर पर कांग्रेस को फायदा हो रहा है और वहां जीत का प्रतिशत ज्यादा है या कहें जीत निश्चित है |

अब यदि श्रीनगर की बात की जाय तो वहां पर भले ही कार्यकर्ता एकजुट होकर कार्य कर रहें हो | वहीँ सत्ता विरोधी जनमत भी उनकी पोजीशन को मजबूत करता है, लेकिन फिर भी इस सीट को जीत पाना जरा सा मुश्किल है, क्योकिं मोहन काला के मैदान में उतरने से कांग्रेस का गणित गड़बड़ा गया है | भले ही जीत का दावा किया जा रहा है लेकिन जीत पाना जरा मुश्किल है |

अब बात विधानसभा पौड़ी, चौबट्टाखाल, लैंसडाउन, या यमकेश्वर की करें, तो इन विधान सभाओं में कार्यकर्ता और उनके नेता नाराज चल रहे | भले ही दिखाने को सभी साथ हो लेकिन अंदर ही अंदर सभी कहीं न कहीं अशान्त हैं | जिसका खामियाजा पार्टी को इस बार फिर उठाना पड़ेगा |

यदि बात करें तो पौड़ी विधान सभा में भले ही नवल किशोर को टिकट देकर स्थानीय व्यक्ति को अहमियत दी गई, लेकिन फिर भी कुछ कांग्रेसी क्षत्रपों की प्रचार से दूरी दिखाती है की कहीं न कहीं उन्हें टिकट न दिए जाने की पीड़ा है | भले ही भाजपा के पूर्व विधायक का जमकर विरोध हुवा हो लेकिन कांग्रेस के नेताओं का बीजेपी ज्वाइन करने से कांग्रेस की जीत पर दुविधा जारी है |

वहीँ चौबट्टाखाल और लैंसडाउन विधान सभा की बात करें तो यहां पर एक जैंसी स्थिति बनी हुई है क्योकिं सालों से पार्टी को मजबूत करने वाले नेताओं को दर किनारे कर, यहाँ ऐंसे व्यक्ति को टिकट दिया गया जिसके द्वारा इस विधान सभा में पार्टी की मजबूती के लिए कोई भी कार्य नहीं किया गया और इस विधान सभा में पार्टी द्वारा थोपा गया है | एक को उसके ससुर तो दूसरे को उसके आर्थिक स्टेटस से आँका गया है और उन्हें प्रत्याक्षी घोषित किया गया | जिस कारण इन विधान सभाओं के कांग्रेस नेता और उनके समर्थक नाराज हैं तथा प्रचार प्रसार में नहीं दिखाई दे रहे हैं |

भले ही हरक सिंह एक करिश्माई नेता हैं, मौजूदा सियासत के दौर में कैसे चुनावी मैदान फतेह करना है, उन्हें बखूबी आता है। परन्तु यहाँ पर नाराज चल रहे नेताओं की निष्क्रियता और अन्य विधान सभा में जाकर प्रचार करने से कठिन डगर बन चुकी है |

वहीँ चौबट्टाखाल की बात करें तो कई नेता और उनके कार्यकर्ता अन्य दलों के संपर्क में बने हुए या फिर कार्य कर रहे हैं और जो कंही नहीं है वह शांत बैठकर तमाशा देख रहे हैं | जिससे कांग्रेस पार्टी कमजोर हो रही है |

यमकेश्वर सीट पर शैलेन्द्र रावत का टिकट देकर भले ही उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों का उन्हें इनाम मिला हो लेकिन महेंद्र राणा की नाराजगी भी बहुत बड़ा गुल खिला सकती है | भले ही उनके द्वारा शैलेन्द्र के साथ दिखाई दे रहे हों किन्तु मन की पीड़ा पौड़ी में दिखाई दे रही है | जिससे यहाँ भी रास्ता कांटो भरा नजर आ रहा है |

अब देखना यह है की इस चुनाव में कांग्रेस कितनी सीटें जीत पाती है या फिर वोटिंग होने तक क्या अपने सभी रूठों को मना पाती है या फिर इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा | यह तो भविष्य के गर्त में छिपा है जिसे कोई नहीं जानता |

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