वीर जवान देश की शान

छोड़ छाड़ कर चले गए वो, घर की दिवाली, होली को |
बड़े प्रेम से सहन किया जिन्होंने, असहनीय बंदूक की गोली को ||

कई वीर जो बम धमाकों में गुजर गए
देश प्रेम में लीन, वीर जो अमर हुए।

छोड़ छाड़ कर मां बाप का दामन धरती मां को अपनाया |
मां की गोदी को त्याग कर इस माटी को बिस्तर बनाया ||

छोड़ कर पहनना वस्त्र, तिरंगे से जब लिपटा आया |
वो मां ना सह पाई ये दर्द, कठोर बाप भी पिघल आया ||

जिसकी चूड़ी, बिंदी, पायल सिंदूरी टीका छूट गया |
दो दिन की दुल्हन को छोड़ कर मजबूर हुआ और दूर गया ||

शरारते, लड़ाई बहना संग जब लौट कर घर नहीं आई |
सूने सूने आंगन में गूंजती बस यादों की शहनाई ||

धर कहीं पर शीश कही पर गिरा पड़ा था लथपथ होकर |
सो गए को सदा के लिए पावन धरा में घायल होकर ||

लाल हो गया बर्फीला हिमालय बहने लगी खून की धारा |
मिट गया अस्तित्व सुहाग, न रहा बूढ़े मां बाप की लाठी का सहारा ||

हिंद धरा की इस माटी ने कई वीरों को खोया है |
शीश उठाता हिम हिमालय पिघल – पिघल कर रोया है ||

प्रवीन सिमरन

सिमरण नेगी, उम्र 21 ग्राम वलसा तल्ला, पो चुराड़ी पौड़ी गढ़वाल

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