जाजरा समणिंकु खबेश

एकदा,
आप बीती कहानी हिन्दी में
कलमबद्ध , गौतम बिष्ट जी
गढ़वाली अनुवाद संदीप गढ़वाली
कहानी का पात्र स्वयं गौतम विष्ट जी


   जेठ मैना की राति भारी खुमस्यो हूँणू छाई । आज हम सब्यूँ कु कछड़ी गौंमा जिंगला वळा ददा जी की जिंगला मा जमीं छै ।

शैद मा सतपुली बटि बोघाट सड़क जनै कुछ चलमल चलमल चमकण वळा जैंगण (जुगनू) जन आंदा दिखेण लगीं।


वै बगत सतपुली बाँघाट रोड ब्यखुनि दा सुनसान ह्वे जान्दि छै । लोग ब्वादा छाई कि शमशान घाट का दगड़ि हिटण वळि या नयार ईं नयार का बाटों फरि राति भौत भूत पिचास रिंगणां रैंदन । सब्यूं कि नजर जिंगला मा बैठि कन ऊँ उज्यळो फरि लगीं छै । अच्यण चक सब्बि उज्यळा घनघोर अंध्यरमा लुकि गेनि । पहाड़ की तलहैटी गदुना का छाल काळु अंध्यरू मा बदले गे ।


सब्यूँ कि आँखी वीं पगडन्डी जन सडक फरि लगीं छाई । अचणचक एक उज्यळु झम्म बळ्याई अर अंध्यरु जग्गा कु एक भारि बडु हिस्सा मा उज्यळु ह्वे ग्याई l
फिर ऊ उज्यळु कत्तर कत्तर ह्वे कन अलग अलग ह्वाई अर बंटे कन चौदिशा मा जांण लगि ग्याई l जन ब्वलेन्द कई लोग राँका (मशाल)बाळि कन कुछ खुज्याणां ह्वाला । बिन्डि बगत तक यु सब्यूं थै दिखेणूं राई । कुछ बगत बाद सब्बि उज्यळा एक कतार मा एकाक पिछनै एक बाँघट जाँण वळि सडक मा हिटण लगि गेनि ।


फेर ई उज्यळा सुक्रिव सैण मा ऐकन अलग अलग ह्वेगीं इखमा एक झरना जन एक जल स्रोत बौगुदु । येकु नौं ददीक मुख बटि हमरु ये जाजरा कु पाणी सुण्यूं छाई । इखमै ऐकन फिर सब्बि कुछ अंध्यरू मा बदले गे । वैका बाद सब शान्त ह्वे ग्याई ।


म्यारू मन मा ख्याल आंणु इतगा लोग जु एक कतार बणैं राँका बाळि कन आँणा छाई कख गे होला ?
वै दिनै पुराणि याद बाळा मन मा समा ग्याई जब जब रुमुक पुड्याँ या दुफरा मा ये जाजरा क पाणीं कु बाटु आणुं जाणुं हूँन्दु छाई जिकुडि मा डैर बणीं रैंदी छै । लुखूं का मुख बटि ईं जगा का बारमा भौत कानि सुणीं छै खबेस भूत की अब त पुरु विस्वास ह्वे ग्याई कि ई जग्गा मा भूत रैंदी रैन्दु च ।

धीरे धीरे बगत गुजरी वा अवस्था पिछनै छुटि अर म्यारू चयन सेना ( फौज )मा ह्वे ग्याई l फौज मा नौकरी का दौरान देश की कई सीमा त खुटौन नापी याली छौ ।
सतपुली मा घार बणौण की एक सैनिक जुनून छाई सतपुली मा घार बणण शुरू कैरियालि छौ वै बगत मोटरसैकल गाडी कुचलन कम छाई सीमित साधनू मा आवागमन हुन्दु छाई ।


तब सैकल ही स्वस्थ सवारी हून्दि छै वा बि कै कै मा ‘ जब मी देरादूण पढ़दु छाई तबकि सैकल मी गौंलीगे छाई मीमा आज वा सैंकल छै ।


वै दिन कोटद्वार बटि सरिया सिमट, ईंट लेकन ट्रक ब्यखुनि दफा पौंछ खाली करदा करदा रातिका 10 बज गेंन तब सतपुली मा रुकणो इतगा प्रचलन निछौन मि कबि रुक छौं । बन त सतपुली मा हमरु चचा जी श्री काला जी कु होटल छाई । जुकि सर्या गढवाळ मा प्रसिद्ध छाई । वै बगत म्यारू ब्यो बि ह्वे गे छौ । मेरी आदत छै कि फौज की छुट्टी मिन कबि भैर नि बितेन ।
तकरीबन सामान बट्वळदा बट्‌वळदा राती पौने ग्यारह ( 10 : 45 ) ह्वे गींन अपणां कमर फरि फौज की खुंखरी बाँधि कन अपणि सैकल लेकि मि सतपुलि बटि गौं खुणै रस्ता लगि ग्यों ।


सतपुली मा जु लोग मीथैं द्यखणा छाई ऊँ कि नजर एक प्रश्न कनी छै कि ईं रात यु आदिम यखुलि मन म्यारू वि छौ ऊँ कि प्रतिक्रिया जणणु पर मि जरा घबरयूँ सी छाई । पर एक फौजी कु संकल्प जु वैंथे सदिन अगनै बढ़णु खुणै प्रेरित करद ।


बीच मा जाजरा कु पाणी मरघट भू्त की कानि याद औण लग गीं । पर ऊँ सब्यूं मा एक फौजी कु स्वभाव भारि पोडि ग्याई l सैकल फरि पैडल मरीन अर जल्दी मी भट्टी से अगनै पौंछि ग्यों । अब बाल पन मा जु डैर मन मा घार बणैं गे छाई जाजरा पाणी कु भूत वा जग्गा ऐ गे छै । आमू का द्वी डाळि पार ह्वे गेनि म्यारू मन मा सुकून छाई कि लोग सुद्दि ब्वल्दी डरौण का वास्ता ।

मिन द्याख राती 12 बजि बि इख कुछ नीच । । अचाणचक इन लगि कि म्यार सैकल मा पिछनै क्वी बैठि ग्याई कुछ भारी भारी जन । जु सैकल पैली हवा मा उडणी छै अव एक जग्गा मा जमखण्ड ह्वै ग्याई । मिन स्वाची इतगा गरु ( भारी ) त मनिख नि ह्वे सकुदु जनि मि सैकल मा पैडल मनु मी इन लगणू की क्वी मीथैं पैथर खैंचणू |

अब मिथै इन लगण लगि कि वै शक्तिशाली भूत – का दगड पाला पोडि ग्या आज त फिर म्यारू सर्या ज्ञान मन मा घुमण लग ग्या कि भूत आदिम फरि हमला नि करदु सुद्दिडाराणूं च अपणा मन थैं तसल्ली दींणू मी । मिन स्वाच मिजोर लगै कन अगनै निकल जौल मिन पूरी तागत लगै कन पैडल मरीन पर कैन जन ब्वलेन्द सैकल फरकै दे होलि अब त अन्तिम हद बि पार हवे । सैनिक स्वभाव जागि ग्या म्यारू हथ खुखरी कु बिन्टा ( मुठ ) फरि चलि ग्याई l
अब त आर पार की लडै कै भूत का दगडि वै खबेशन मिथै नांगी खुंखरी का दगडि भुंई मा लम्डै द्याई l म्यारा हथ खुट्टा रेत का थुपडा ( ढेर ) मा धंसे गींन । अरे यु क्य ह्वे इखमा त रेत निछै तबि त सैकल रेत मा घंस गे छै । मिन चितै कि भूतन सैकल थैं पखडियाल ।


वै दिन मिन एक भौत बडु पाठ सीख । जु कि ये जाजरा कु भूतन मीथैं सिखै । कि हम भरम मा म्वरदा अफि हम अपणां मथि डैर थैं हाबी कैर दीन्दा । वास्तव मा इन कुछ हून्दू नीच । मि राति 12 बजे वखमा वैठी खूब हैंसू अपणा अविवेक फरिअपणां डैर फरि भूत प्रेत अर अंध विश्वास फरि गौं की रुढिवादी सोच फरि ददा ददी की कानि कु असर फरिये युग मा भूतों को सच फरि फिर क्य छै । जन क्वी योद्धा लडैं (जंग) जीति कन आंन्द । उनि भाव मा पूर्ण अत्म विश्वास का दगडि खुंखरी कमर मा लटकै कन सैकल मा धीरे धीरे पैडल मरदा मरदा नयार का छाल औ । वैदिन बटी सब्बि भूत पिचास मेकु अदृश्य ह्वे गीं सदनि खुणै ।


( हिन्दी लेख गौतम बिष्ट जी द्वारा )